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________________ जैन कथानों में नामों की संपोजना नामकरण भी हमारी संस्कृति एव सभ्यता का द्योतक है । विश्व मे कोई भी ऐसा चेतन तथा अचेतन नही है जिसका नाम न हो । नामो के माध्यम से ही हमे ऐसे सकेत उपलव्ध होते है जिनसे पदार्थो एव प्राणियो के स्वभावादि का परिज्ञान होता है । सस्कारो मे नामकरण को अभिहित करके हमारे ग्राचार्यों ने नामों की उपयोगिता को भी समझा है। विभिन्न प्रकारो के नाम विश्व के प्रागरण मे पल्लवित एव पुष्पित भिन्न-भिन्न धर्मो एव सम्प्रदायो के क्रमिक विकास से सम्बद्ध इतिहास की उभरी हुई रेन्वानो को प्रस्तुत करते है । रामदास, सियाशरण कृष्णशकर, कृष्णविहारी, श्यामबिहारी, राधारमण, गगादास, यमुनादास, शिवदास, शिवसहाय, जिनदास, जिनदत्त, ऋपभदाम, कालीचरण, भैरवनाथ, नर्मदाप्रसाद, धर्मदाग, भूतनान, पार्वती, नुतुच्या, मीता, राधा, चम्पा, चमेली, देवीदास, मागरमल, प्रतापगह, नन्ददास, बुद्धिप्रकाग, गोपालदान, गोपालशरणसिंह यादि नाम एक और मानद की विनिष्ट सम्प्रदाय-प्रियता को बताते हैं और दूसरी ओर उनकी भनि-परम्परा को भी प्रभिब्यजित करते है । ग्रामीण नाम यदि हमारी गाम्न-मा कृति को जीवित रख रहे है तो सुमस्कृत नामावली एक उदात सास्कृतिक नेतता की भिति यो भी मुनरित करती है। गुण स्वभाव, जाति, धार्मिक विखान, जपान, शारीरिक नाकार-प्रकार, कुल-गोनाटि मति पनि, पान्गिन्ति नाना रण, छाती
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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