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जैन कथानो का सास्कृतिक अध्ययन
प्राचीन जैन कथा-साहित्य मे सर्वप्रथम गुम्फित विना विचार करने का फल, घण्टी वाला गीदड, कपट का फल, वन्दर और वया, लालची गीदड, राजा का न्याय, गीदड की चतुराई, दो पाथली सत्तू, घोडो का सईस, कृतन कौए, वृद्ध जनो का मूल्य, वैद्यराज या यमराज, विद्या का घडा, रानी मृगावती, राजा शालिवाहन का मत्री, विक्रमराज मूलदेव गगा की उत्पत्ति, कपिल मुनि, शम्ब की कील, यक्ष या लकडी का हूँठ, चाण्डाल पुत्रो की कहानी, रोहिणेय चोर, जिनदत्त का कौशल, कल्पक की चतुराई प्रादि कहानियाँ, वघेलखड, बुन्देलखड, छत्तीसगढ, राजस्थान, मालवा, नीमाड, रुहेलखण्ड, वगाल, काश्मीर, गढवाल, पजाव, भोजपुर, कर्नाटक, दक्षिण भारत, गुजरात आदि भू-भागो मे कुछ रूपान्तर के साथ विभिन्न शीर्गको से प्रचलित है । इन मे से कतिपय कथाएँ तो पाश्चात्य देशो मे भी साधारण परिवर्तन के साथ लोक जीवन मे समा गई है।
जेन-कथा-साहित्य की यह सार्वभौमिकता प्रमाणित कर रही है कि विश्व की कहानियाँ जैन कथाओ से अत्यधिक प्रभावित है।