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जैन कथाग्रो की सार्वभौमिकता
अपने पास रोके रहती है । 'नायाधम्म कहा की 'प्रलोभनो को जीतो' कहानी का कथानक 'अलिफ लैला' की कहानियों से बहुत साम्य रखता है ।
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[ जैन कथा साहित्य - लेखक प्रोफेसर फूलचन्द जैन सारग एम ए साहित्य रत्न, श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरि स्मारक ग्रथ से साभार ।]
डॉ० जगदीशचन्द्र जैन ने जैन - कथा - साहित्य से चुनकर 'दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ' नाम से एक कथा संग्रह प्रस्तुत किया है । इस संग्रह मे संग्रहीत कथाएँ तीन रूपो मे ( लौकिक कहानियाँ, ऐतिहासिक कहानियाँ एव धार्मिक कहानियाँ ) विभाजित की गई है ।
लौकिक कथाओ के सम्बन्ध मे डॉ० जैन ने लिखा है लौकिक कथाओ मे उन लोक- प्रचलित कथाग्रो का संग्रह है जो भारत मे बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है, और जिनका किसी सम्प्रदाय या धर्म से कोई सम्बन्ध नही है । इस विभाग मे दो कहानियाँ नाया धम्म कहा (ज्ञातृ धर्म कथा ) मे से ली गई है । इन कहानियो मे चावल के पाँच दाने (नाया धम्म ७) कहानी कुछ रूपान्तर के साथ मूल सर्वास्तिवाद के विनय वस्तु ( पृ० ६२ ) तथा वाइबिल ( सैण्ट मैथ्यू की सुवार्ता २५, सेण्ट ल्यूक की सुवार्ता १६ ) मे भी ग्राती है । मादी पुत्रो की कहानी (नाया धम्म ६ ) काल्पनिक प्रतीत होने पर भी हृदयग्राही तथा शिक्षाप्रद है । इस प्रकार के लौकिक आख्यानो द्वारा भगवान् महावीर सयम की कठोरता और अनासक्ति भाव का उपदेश देते थे । यह कथा कुछ रूपान्तर के साथ वलाहस्स जातक (स० १६६ ) तथा दिव्यावदान मे उपलब्ध होती है । इस विभाग की कई कहानियाँ पहेली साहित्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्व की है । पडित कौन ? ( आवश्यक चूरिंग, पृ० ५२२२६) चतुर रोहक (वही पृ० ५४४ - ४६ ) राजा का न्याय ( वही पृ० ५५५५६), चतुराई का मूल्य ( वही पृ० ५७-६० ) नामक कहानियाँ अत्यन्त मनोरजक और कल्पना शक्ति की परिचायक है । इनमे से अनेक कहानियाँ आजकल वीरवल और अकवर की कहानियो के नाम से प्रचलित है । चतुर रोहक का कुछ भाग महा उम्मग्ग- जातक मे पाया जाता है । पडित कौन है ? का कुछ भाग रूपान्तर के साथ शुक सप्तति ( २८ ) मे आता है । दो मित्रो की कहानी (आवश्यक चूरिंग, पृ० ५५१) कथासरित्सागर ( पृ० ३१५ ) शुक सप्तति ( ३६ ) तथा कुछ रूपान्तर के साथ कूट वाणिज जातक और पचतत्र मे पायी जाती है ।" 1
1. दो हजार वर्ष पुरानी कहानिया - प्रास्ताविक से साभार ।