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जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
करते हैं और कहा पुष्प फल आदि का बहुतायत से उपयोग होता है। जैन-ग्रन्थो से पता चलता है कि देश-विदेशो मे जैन-श्रमणो का बिहार क्रमक्रम से वढा । सम्प्रति उर्जायनी का बडा प्रभावशाली राजा हुआ। जैन-ग्रन्यो मे सम्प्रति की बहुत महिमा गायी गई है। इसने (सम्प्रति ने) अपने योद्धानो को शिक्षा देकर साधु के वेष मे सीमान्त देशो मे भेजा जिससे इन देशो मे जैन-श्रमणो को शुद्ध आहार पान की प्राप्ति हो सके। इस प्रकार राजा सम्प्रति ने अान्ध्र, द्रविड, महाराष्ट्र और कुडुवक (कुर्ग) आदि जैसे अनार्य देशो को जैन-श्रमणो के सुख-पूर्वक विहार करने योग्य बनाया। इसके अतिरिक्त सम्प्रति के समय से साढे पच्चीस देश आर्य देश माने गए, अर्थात इन देशो मे जैन धर्म का प्रचार हुआ।"1
जैन कथानो ने अपनी रचना- प्रक्रिया से विश्व के समस्त कथा साहित्य को विशेषत प्रभावित किया है । किस प्रकार कथा की नियोजना होनी चाहिए तथा किन किन रूपो मे कथाकारो को कथानो मे लोक-जीवन की अभिव्यक्ति करके भाव-व्यजना को बलवती बनाना चाहिए एव रस योजना कहानियो मे किस प्रकार की जानी चाहिए आदि विषयो का जिस गभीरता से जैन कथानो मे निरूपण किया गया है उसका अनुशीलन कर ससार के कहानीकारो ने जो विशिष्ट उपाधिया प्राप्त की है उनका प्रमुख साधन जनकथा साहित्य ही है । जैन-कथा प्ररूढियो से विश्व-कथा साहित्य पर्याप्त रूप रूप से अनुप्राणित हुआ है। जैन-कथानो की भाव-भाषा-शैली से प्रभावित विश्व का कहानी साहित्य अपने प्रारम्भिक उत्थान से ही है। जैन-पुराणो के मूल प्रतिपाद्य विषय ६३ महायुरुषो के चरित्र है। इनमे सन्निहित कथाएँ यूरोपियनो के मत से विश्व-साहित्य मे स्थान पाने योग्य हैं।
जैन कथानो को आधार बनाकर अनेक कवियो एव नाटककारो ने कई महाकाव्य, खड काव्य एव नाटक लिखे है। सूफी कवि जायसी का प्रसिद्ध महाकाव्य 'पद्मावत' की रचना प्राकृत जैन-कथा 'रयण सेहरी नरवइ कहा' पर आधारित है । डॉ० रामसिंह तोमर के मतानुसार जैन साहित्य से इस प्रकार अनेक काव्यमय आख्यायिकानो के रूप हमारे प्रारम्भिक हिन्दी कवियो को मिले और प्रम मार्गी कवियो ने उनपर काव्य लिखकर अच्छा मार्ग प्रस्तुत किया (दृष्टव्य जैन-साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन-प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ४६७) 1 जैन-ग्रन्यो मे भौगोलिक सामग्री और भारत वर्ष मे जन-धर्म का
प्रसार ले० डॉ० जगदीश चन्द्र जैन (प्रमी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० २५१)