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जैन कथाओं की सार्वभौमिकता
जैन- कथा - साहित्य ने विश्व की कथाओ को विविध रूपों मे प्रभावित किया है । इन जैन कहानियो के कथानक विश्व की कथाया मे इस प्रकार गुम्फित है कि शोध-दृष्टि सुगमता से इनकी व्यापकता का परिज्ञान कर सकती है ।
प्राचीन काल मे जैन साधु विभिन्न प्रान्तो मे भ्रमण कर जैन-धर्म का प्रचार करते थे एव कथाओ के माध्यम से जैन सिद्धान्तो की गूढता को सुबोध बनाकर लोक - मानस की अभिरुचि को जैन-धर्म के प्रति आकर्षित करते थे । फलत ये कथाएँ लोक-प्रिय बनी और प्रान्तीय बोलियो मे प्रवृत्त होकर लोक-मस्कृति की सरक्षिका कहलाई ।
"बृहत्कल्प भाष्य मे कहा गया है कि देश - देशान्तर भ्रमण करने से साधुओ की दर्शन-शुद्धि होती है तथा महान् आचार्य आदि की संगति से वे अपने आपको धर्म मे अधिक स्थिर और विद्या मंत्र आदि की प्राप्ति कर सकते है । धर्मोपदेश के लिए साधु को नाना देशो की भाषा मे कुशल होना चाहिए, जिससे वे उन देशो के लोगो को उनकी भाषा मे उपदेश दे सके । जन पद - परीक्षा करते समय कहा गया है कि साधु इस बात की जानकारी प्राप्त करे कि कौन से देश मे किस प्रकार से धान्य की उत्पत्ति होती है - कहा वर्षा से धान्य होते है ? कहा नदी के पानी से होते है ? इस प्रकार साधु को यह जानना आवश्यक है कि कौन से देश मे वाणिज्व से ग्राजीविका चलती है और कहा के लोग खेती पर जीवित रहते हैं तथा कहा लोग मास भक्षण