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जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
मैत्री, विश्व वन्धुत्व श्रादि मानवीय भावनाओ के प्रदर्शन मे सफल इन जैन कथाग्रो की रचना-प्रक्रिया वडी विशद, भाव-पूर्ण, वैविध्य परिपूर्ण, सहज एव आकर्षक है । अनेक कहानियो की रचना-प्रक्रिया मे अलकारादि प्रयोग हुए है और फलत उनकी भाषा मे रमणीयता एव मधुरिमा का अधिक समन्वय हो गया है । ऐसी रचना-प्रक्रिया से आवद्ध कथाओ का साहित्यिक महत्व विशेषत उल्लेखनीय है । पुराणादि में गुम्फित कथाग्रो मे अनेक ऐसी कहानियाँ है जो विशुद्ध मनोवैज्ञानिक कही जा सकती हैं । उनकी शिल्प मे समासान्त पदावली का वाहुल्य है, संस्कृत शब्दो की प्रचुरता है एव लम्बे-लम्बे वाक्य है, जिनसे मनोवैज्ञानिक तथ्यो को निरूपित किया गया है । इस प्रकार विभिन्न कथाओ की रचना - विधि मे वैविध्य होता है, जो स्वाभाविक ही है ।
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वस्तुत कथा - रचना-प्रक्रिया कथाकार की कला - सौन्दर्य-प्रियता की परिचायिका है । जिस प्रकार वास्तुकला मे प्रवीण शिल्पकार अपने कौशल से नवीनता, आकर्षण, एव विशिष्टता को साकार बनाता है उसी प्रकार कथाकार अपने नियोजन - कौशल से उपलब्ध कथावस्तु आदि से कहानी एक ऐसी विलक्षणता को चित्रित करता है जिसे देखकर पाठक - समुदाय विमुग्ध हो जाता है । एक ही कथावस्तु को आधार बनाकर जब विभिन्न कथाकार अपनी-अपनी लेखनी से कहानी को भिन्न-भिन्न रूपो मे अकित करते है तभी तुलनात्मक दृष्टि से रचना - शिल्प की उत्कृष्टता का अध्ययन किया जा सकता है । प्रबुद्ध एव कल्पना - शील चित्रकार की तूलिका की साधारण थिरकन भी असाधारण चित्र को जन्म देती है उसी प्रकार प्रतिभा सम्पन्न कथाकार का सुव्यवस्थित नियोजन-शिल्प सामान्य कथानक को लोक-प्रिय कहानी के रूप मे प्रस्तुत कर देता है ।