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जैन कथाओं की रचना प्रक्रिया
जैन कहानियो का रचना- विधान बडा ही सरल सरस एव आकर्षक है । इनमे न शाब्दिक काठिन्य है और न भावो की दुर्बोधता । ये कथाएँ सामान्य जनता के लिए लिखी गई थी अत इन्हे इतना सुबोध बनाया गया था कि प्रशिक्षित जन-समुदाय भी इसे समझ सके और मनोरजन के साथ-साथ जीवन की विषमता से भी अवगत हो सके । ये समस्त कहानियाँ एक विशिष्ट लक्ष्य को लेकर निर्मित हुई थी और आचार-व्यवहार, प्रथा-परम्परा और जीवन-जगत् को अपने प्राकार मे सभालती हुई आज भी जीवित है । समयसमय पर इनका स्वरूप परिवर्तित हुआ और स्वरो मे बदलाव ग्राया, लेकिन प्रबोधन की भावना ग्रमिट रही ।
कतिपय कथाओ को छोडकर प्राय समस्त कथाएँ ऐसी है जिनमे प्रस्तावना का अभाव है । साधारणतया कथा का प्रारम्भ किसी नगर अथवा ग्राम के नाम के उल्लेख से होता है तथा साथ ही साथ किसी विशिष्ट शासक, अथवा प्रधान पुरुष का भी सकेत किया जाता है । नृपति के नामोल्लेख के साथ उसकी रानी एव राजकुमारो की भी प्रारम्भिक चर्चा करदी जाती है । बहुसंख्यक कहानिर्या ऐसी है जिनमे साधारण व्यक्तियो की प्रधानता रहती है और कथाओ का प्रारभ व्यक्ति विशेष की साधारण स्थिति के परिचय के साथ किया जाता है । कुछ कथाए ऐसी भी है जिनका प्रारम्भ किसी प्रधान घटना की पूर्व पीठिका से होता है । कथा के प्रारभ मे विशिष्ट पात्र के उल्लेख के