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________________ १०४ जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन उनका पिंड न छोडा । उसने तीन दिन तक काम विकारो की नाना चेष्टाएँ की परन्तु जगज्जयी काम को जीतने वाले सुदर्शन मुनि मेरु के समान सर्वथा निश्चल रहे | आखिरकार वेश्या लाचार और निरुपाय होकर रात्रि को उन्हे स्मशान भूमि मे लेजाकर कायोत्सर्ग पूर्वक स्थापन कर आई और अपने घर चली आई | यहाँ सुदर्शन मुनि कठिन तपस्या के फल से केवल ज्ञान प्राप्त करके गध कुटी रूप समवसरणादि की विभूति से युक्त हुए । उनके केवल ज्ञान के अतिशय को देखकर व्यन्तरी सम्यग्दृष्टी हो गई और पडिता तथा देवदत्ता ने दीक्षा ग्रहण करली ।" पुण्यास्रव कथाकोष पृष्ठ १२१ यथार्थवाद एव आदर्शवाद की इस चर्चा मे यह भी उल्लेखनीय है कि कथाकारो ने पीडित मानव की सन्तुष्टि के लिए जिस आदर्शवाद की स्थापना की है वह केवल कल्पित नही है अपितु मानवीय साधना के भीतर ही है ।
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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