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जैन कथाओ के पात्र
वासिनी कई जातियो के प्रमुख व्यक्ति भी इन कथाग्रो के पात्र वने है और उन्होने साधना करके एक पुनीत प्रादर्श को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया है । मेढक सा साधारण प्रारणी भी इन कथाओ के माध्यम से शिष्ट जनो का प्रिय बनता है और पनी भक्ति भावना के सहारे मृत्यु का वरण कर स्वर्गवासी देव की अनुपम वैभव वशालिता को प्राप्त करता है । शृगाल रात्रि भोजन का परित्याग कर शिथिल मानव समाज के लिए एक चेतावनी देता है ।
मरणासन्न सुग्रीव बैल पच नमस्कार मन्त्र को सुनकर अपनी भावना को पुनीत बनाता है और वृषभ शरीर का त्याग कर राजा छत्रछाया की रानी श्रीदत्ता की गोद मे वृषभध्वज नामक पुत्र के रूप मे बाल सुलभ क्रीडाएँ करता है । (देखिए सुग्रीव बैल की कथा, पुण्याश्रव कथाकोप पृष्ठ ७८ ) साधारणत- कथाओ के पात्रों का विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है. -
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(१) ऋषि-मुनि ( २ ) राजा-रानी (३) सेठ-सेठानी (४) देव-दानव (५) विद्याधर ( ६ ) अरण्यवासी - ग्रादिवासी (७) मानव ( विभिन्न जातियो के नर-नारी ) ( 5 ) पशु-पक्षी ( ६ ) कीट-पतंगादि (१०) देवी-देवता ( ११ ) वेश्या ( १२ ) चोर डाकू (१३) विविध ।
( पात्रो के सन्दर्भ मे वेश्याग्री, राजाग्री एव ऋषि मुनियों की विशेष चर्चा की गई है | )
प्राय देखा जाता है कि कुपात्र भी जीवन की विषम यातनाओ को सहता हुआ कथा के अन्त मे प्रायश्चित्त अथवा धर्म-साधना की पावन आग मे अपने दुष्कृत्यो या दुर्भावनाओ को दग्ध करके अपने आप को सत्पात्र के रूप मे प्रस्तुत करता है । जैन कथाग्रो की यह विशेषता है कि इनमे चित्रित दुष्ट पात्र भी शिष्ट बन जाते हे । ये पात्र अपने कथनो के माध्यम से ग्रपती चारित्रिक विशेषताओ को प्रकट करते है एव जीवन की शुभाशुभ गतिविधियो को सहज रुग मे समाज के सन्मुख अभिव्यजित कर देते हैं ।