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जैन कथानो का सास्कृतिक अध्ययन
अथवा जो उन घटनायो से प्रभावित होते है। इन्ही व्यक्तियो के क्रिया-कलाप से कथानक और कथावस्तु का निर्माण होता है। अत भले ही किसी कृति मे घटनाप्रो की वहुलता और प्रधानता हो, पात्रो या चरित्रो का उसमे अभाव नही हो सकता । कथा की कल्पना मे ही पात्रो की विद्यमानता निहित है।
___ कथा के पात्रो को किस प्रकार उपस्थित किया जाय, यह कलाकृति के रूप लेखक की रुचि तथा योग्यता और उसकी कृति के उद्देश्य पर निर्भर है । काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी आदि मे पात्रो के प्रयोग, अर्थात चरित्र चित्रण के अपने-अपने ढग और विधान होते है। सब मिलाकर पात्रो का चरित्र-चित्रण तीन प्रकार से हो सकता है (१) पात्रो के कार्यो के द्वारा (२) उनकी बातचीत के द्वारा तथा (३) लेखक के कथन और व्याख्या द्वारा।
___कथा की घटनाएँ तो प्राय पात्रो के स्वभाव और प्रकृति से ही प्रसूत होती है। उसके वातावरण या देश-काल का निर्माण चरित्रो को स्वाभाविकता और वास्तविकता प्रदान करने के लिए ही किया जाता है। कथनोपकथन धटनाग्रो से भी अधिक चरित्र को ही व्यजित और प्रकाशित करता है तथा कथा के उद्देश्य की महत्ता भी चरित्र मे ही निहित होती है।
___ जैन कथानो मे जिस सार्वभौतिकता एव विश्व कल्याण की दिशद भावना को अपनाया गया है उसकी परिधि इतनी विशाल है कि ससार के समस्त प्राणियो का इसमे समावेश हो सकता है। जैम-धर्म जीवमात्र का हितकारी है। वह विश्व के प्रत्येक प्राणी को सुखी देखना चाहता है और यथाशक्ति उसे सन्मार्ग का पथिक बनाना चाहता है ।
इन कथानो मे देव, असुर, मानव, साधु-सन्यासी, दैत्य, दानव, राजा रानी, विद्याधर, धनिक, दीन, पशु पक्षी, कीट पतगादि सव पात्र बनकर आए है । यदि देवता अपने विशिष्ट वैभव से युक्त है तो असुर भी अपनी आसुरी भावनामो एव कामनामो से परिपूर्ण दिखाये गए है । तोता, मैना, काग, कोकिल, बक, हस मयूर, गृद्ध आदि नभचर यदि इन कथानो मे अपनी वेदना की अभिव्यक्ति करते है तो गाय, बैल, घोडा, वन्दर, सिंह, मृग, व्याघ्र, सूकर, शृगाल, गज, भेडिया आदि भी मुनियो के उपदेशो को सुनकर प्रभावित होते है तथा अपने कुकृत्यो पर पश्चात्ताप करने लगते है। क्रूर वन्य पशु भी धर्मोपदेश के श्रवण से देव-योनि मे मरकर उत्पन्न होते है और अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाते है । ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्रो के साथ-साथ अरण्य
1. हिन्दी साहित्य कोश भाग १ पृष्ठ ४८८