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________________ जैन कथाओं के पात्र कथानो मे पात्रो की अनिवार्यता असदिग्ध है। ये पात्र ही है जो कथा को जन्म देते है और उनके ही सहारे कथावस्तु समुचित विस्तार प्राप्त करती है । पात्र ही कथानक मे अलौकिकता लाते है और ये ही कथावस्तु मे नये मोड लाकर पाठको के सम्मुख जीवन की सम-विषम परिस्थितियो को प्रस्तुत करते हैं । सत्य तो यह है कि कथानो के निर्माण के प्रमुख आधार पात्र ही है। दूसरे शब्दो मे हम यो कह सकते है कि पात्रो के अभाव मे कथा का अस्तित्व भी असभावित कहा जा सकता है। कथाकार अपने जीवन के कटु एव मधुर अनुभव पात्रो के माध्यम से ही प्रकट करते हैं। चरित्र-चित्रण की सार्थकता पात्रो पर ही अवलवित है एव वातावरण की सृष्टि को सफल बनाने वाले ये विविध पात्र ही तो है । पात्रो की विविधता कथावस्तु मे वैविध्य लाती है और रोचकता मे नवीनता समुत्पन्न करने का श्रेय इन पात्रो को ही है । कथाओ के ही लिए पात्रो की आवश्यकता नहीं होती है अपितु महाकाव्य, खडकाव्य, नाटक, उपन्यास आदि साहित्य की विविध विधानो के लिए भी पात्रो की सतत आवश्यकता अपरिहार्य है। कल्पना के माध्यम से जो कथानो मे पात्रो की विशिष्ट सृष्टि की जाती है अथवा उनमे (पात्रों मे) जो वर्गगत विशेषताग्री का उल्लेख किया जाता है वह कथा की चारित्रिक विकास-गरिमा को मुखर करता है। पात्र -कथात्मक साहित्य का अन्यतम तत्व, एव चरित्र वे व्यक्ति हैं जिनके द्वारा कथा की घटनाएं घटती है
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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