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________________ जैन कथाओ मे अलौकिक तत्व (२०) तीर्थ कर का जन्म होते ही भवनवासी देवो के घर शख बजना, व्यतरो के निवास स्थान मे भेरी का, ज्योतिषियो के यहाँ सिंहनाद का और कल्पवासियो के यहाँ घण्टा का शब्द होना । पुण्यात्रव कथा कोष पृष्ठ ३३५ (२१) जिनेन्द्र देव के जन्म-समय उनके सौन्दर्य को देखने के लिए इन्द्र का हजार नेत्र करना तथा पाण्डुक वन की ईशान दिशा मे स्थित शुभ्र चन्द्राकार पाण्डुकशिला पर रत्नजडित सिंहासन पर विराजमान जिनेन्द्रदेव (वाल रूप मे) का बारह योजन ऊँचे, आठ योजन चौडे, एक योजन मुख वाले १००८ घडो से पांचवें क्षीर सागर के जल से अभिषेक करना । (२२) देवकृत चौदह अतिशयो का होना-(१) अर्द्धमागधी भाषा (२) सर्वजन मैत्री (३) समवशरण का समस्त ऋतुमो के फल-पुष्पादि से सुशोभित होना (४) रत्नमयी मही (५) विहारानुकूल मारुत (६) वायुकुमार देवो द्वारा धूलि को शान्त करना। (७) मेघकुमार जाति के देवो द्वारा समवशरण मे गन्धोदक की वर्षा करना (८) भगवान के गमन करने मे जहाँ उनका पैर पडता था, वहाँ उनके पैर के नीचे आगे पीछे दोनो जगह सात-सात कमलो की रचना देवो-द्वारा किया जाना । (६) समस्त पृथ्वी का हर्पित होना (१०) जन मोदन (मनुष्यो का प्रमुदित होना) (११) आकाश का सदा निर्मल होना (१२) देवो का भगवान के दर्शनार्थ परस्पर बुलाना (१३) धर्मचक्र का गमन काल मे आगे-आगे चलना (१४) अष्ट मगल द्रव्य । - -
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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