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जैन कथात्रों में अलौकिक तत्व
अलौकिकता जैन कथानो की एक विशेषता है जो इनकी रोचकता को बढाती है और कथानक मे एक विशिष्ट मोड को जन्म देकर उसकी अभिवृद्धि मे नूतनता उत्पन्न करती है । यही अलौकिता पाठक एव श्रोता के मानस मे कौतूहल समुत्पन्न करके कथा के प्रति नूतन आकर्षण बनाये रखती है । पात्रो के चरित्रो के विकास मे इस अलौकिकता का निशेष महत्व है। ,
वस्तुत लोक-समाज मे हास्य-कथानो के समान अलौकिक कथाएँ भी अत्यधिक प्रिय है तथा उनका विशिष्ट स्थान है। मनुष्य अलौकिक तत्वो की कल्पना सदैव से किसी न किसी रूप मे अवश्य करता रहा है जो उसके सब कार्यों को सुगम बना सके तथा जिसके माध्यम से वह अलभ्य वस्तुओं को भी प्राप्त कर सके । वह अपने जीवन का अधिक समय कल्पना लोक मे व्यतीत करता है तथा अपनी अतृप्त इच्छाप्रो को इसी के द्वारा पूर्ण करता है । इन सब भावनामो की पूर्ति इन्ही कहानियो के द्वारा होती है । अलौकिक कहानियाँ यद्यपि असत्य होती है और मनुष्य को वास्तविक जगत से दूर ले जाती है पर मनुष्य की अतृप्त आकाक्षानो को पूरा करती रहती है। इसीलिए उसे इस प्रकार की कहानियो को सुनकर बडा आनन्द मिलता है जो क्षणिक ही होता है । यही कहानियाँ मनुष्य के अन्तर्मन मे उपस्थित उस अद्भुत मानव की परोक्ष रूप से पूर्ति करती रहती है जो ऐसे दानव को विजय करना चाहता है जो उमकी सेवा मे रह सके तथा उसको धन दे सके, ऐश्वर्य दे सके और यही