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जैन कथानो मे अलौकिक तत्व
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का अद्भुत मानव अमी जल आदि पीकर अमर हो जाना चाहता है । इन अलौकिक कहानियो मे सदा यह देखने को मिलता है कि जो सत्यनिष्ठ है वह बडी से बड़ी विरोधी शक्तियो से भी संघर्ष करके अत मे विजयी होता है । इन कहानियो की अलौकिकता मे लोक-मानव का इतना ही विश्वास है जितना अन्य अधविश्वासो मे । वह दानव, परी, भूत, प्रत, जादू अादि मे विश्वास करने के कारण इन कहानियो को भी बहुत आस्था से कहता और सुनता है । कई वार ये लोग भूत, प्रेत, दानव तथा जादू भी सिद्ध करते पाये जाते है ।"1
जन-कथाओ मे अलौकिकता का अश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है लेकिन इस प्रकार की अलौकिक कथाएँ सर्वथा असत्य नही होती है । एक मोर ये कहानियाँ महापुरुषो तथा जैन मुनियो के अलौकिक प्रभाव को प्रदर्शित करती है और दूसरी ओर जैन धर्म के अनुयायियो के सन्मुख यह प्रमाणित करती है कि जैन-धर्म का प्रभाव प्रदर्शन प्राय विश्व की समस्त धर्म सम्बन्धी कहानियो मे देखने को मिलता है। यही अलौकिक तत्व धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करता है एव मानव-समाज को धर्म-भीरु बनाता है। ऋपि-मुनियो ने इसी प्रकार की अलौकिक कथाओ की सृष्टि करके लोक-जीवन मे धार्मिकता को स्थिर किया है जो कई युगो के व्यतीत हो जाने पर भी आज लोकमानस मे पूर्ववत् सुदृढ है ।
आज के इस वैज्ञानिक युग मे इस प्रकार के अलौकिक तत्वो को कपोल कल्पित कहा जा रहा है, लेकिन जिस प्रकार विज्ञान ने अपनी गरिमा के माध्यम से अनेक विचिन तथ्यो को ससार के आगे सहज रूप मे प्रमाणित कर दिया है उसी प्रकार यदि अन्वेषण किया जाय तो जैन-कथायो मे वरिणत कई 'पाश्चर्य' सत्य सिद्ध हो सकते है । वीतरागी जिनदेव द्वारा कथित अलौकिक तत्वो को हम निस्सार नहीं मान सकते है । मानव अपनी सीमित मेधा से इन्हे नापने का असफल प्रयत्न न करे तो श्रेयस्कर ही है। यह पूर्ण सम्भव है कि आज के वैज्ञानिक यदि जैन-अाश्चर्यो की पूर्ण खोज करे तो उन्हे ऐसे तथ्यो का परिज्ञान होगा जो उन्हे शाश्वत सत्य की ओर आकर्षित करेगे और विश्व के सन्मुख कई नूतन सत्य साकार बनेगे ।
जैन धर्म आत्मा की अनन्त शक्ति मे विश्वास करता है और इसकी यह चिरन्तन मान्यता है कि कर्मो का क्षय करके आत्मा परमात्मा बन जाती
1 खडी बोली का लोक-साहित्य-ले० डॉ० सत्या गुप्त-पृष्ठ १८७ तथा
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