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________________ जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन । स्वयम्बर-प्रथा की यदि हम इतिहास-क्रम से समीक्षा करे तो हमे ये जैन-कहानियाँ बडी सहायक होगी। इसी प्रकार म्लेच्छो के प्रति जो अनुदारता आज दिखाई जा रही है वह पूर्व मे न थी । अनेक नरेशो ने म्लेच्छ कन्यानो के साथ विवाह करके प्राचीन काल मे उनके साथ (म्लेच्छो के साथ) आत्मीयता स्थापित की थी। वस्तुत ये मानव ही हैं और इनकी आत्मा को हमे अमानवीय व्यवहार से नही दुखाना चाहिए। __ जैन शास्त्रो को, कथा ग्रन्थो को या प्रथमानुयोग को उठाकर देखिए। उनमे आप को पद पद पर वैवाहिक उदारता दिखाई देगी। पहले स्वयम्वर प्रथा चालू थी, उसमे जाति या कुल की चिन्ता न करके गुण का ही ध्यान रखा जाता था। जो कन्या किसी भी छोटे या बडे कुल वाले को उसके गुणो पर मुग्ध होकर विवाह लेती थी उसे कोई बुरा नही कहता था। हरिवश पुराण मे इस सम्बन्ध मे स्पष्ट लिखा है कि स्वयम्बर गत कन्या अपने पसद वर को स्वीकार करती है, चाहे वह कुलीन हो या अकुलीन। कारण कि स्वयम्बर मे कुलीनता-अकुलीनता का कोई नियम नही होता। (जैन धर्म की उदारता पृष्ट ६३) जैन-पुराणो के अध्येतानो से यह तथ्य छिपा हुआ नहीं है कि तद्भव मोक्षगामी महाराजा भरत ने बत्तीस हजार म्लेच्छ कन्यानो से विवाह किया था, किन्तु उनका स्तर कम नही हुआ था । जिन म्लेच्छ कन्याओ को भरत ने विवाहा था वे म्लेच्छ धर्म-कर्म विहीन थे। उसी प्रकार भगवान शान्तिनाथ (चक्रवर्ती) सोलहवे तीर्थकर हुए हैं । उनकी कई पत्नियाँ तो म्लेच्छ कन्याएं थी । जैनधर्म की उदारता, पृष्ठ ६६,६७ चक्रवर्तित्व की विभूति के प्रमाण मे बत्तीस हजार म्लेच्छ राजाओ की पुत्रियो का भी उल्लेख किया गया है। देखिए-प्रण्यास्त्रव कथाकोश पृष्ठ ३५७ । __इस प्रकार इन कथानो का अध्ययन इतिहास के विविध दृष्टिकोणो को ध्यान मे रख कर किया जा सकता है तथा इस अध्ययन में पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हो सकती है । सस्कृत भाषा मे लिखे हुए जैन पुराण ग्रन्य अति प्राचीन है। उनमे अपेक्षाकृत बहुत अधिक ऐतिहासिक सामग्री सीधी-सादी भाषा मे सुरक्षित है। अलवत्ता कही-कही पर उसमे धार्मिक श्रद्धा की अभिव्यजना, कर्म सिद्धान्त की अभिव्यक्ति को लिए देखने को मिलती है। जैन पुराणो के साथ ही जैन कथाप्रो के महत्व को नहीं भुलाया जा सकता जिनमे बहुत सी छोटी-छोटी कथाएं सगृहीत है । ऐसे कथा ग्रन्थ, प्राकृत, सस्कृत, अपभ्र श, हिन्दी, कन्नड आदि भाषाओ मे मिलते है। इनमे
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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