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विद्या-सिद्धि | ३७ को और सिद्धार्था, शत्रुदमनी, निर्व्याघाता तथा आकाशगामिनी-ये चार विद्याएँ विभीषण को प्राप्त हुईं। .
विद्यासिद्ध होने पर अनाधृत यक्ष ने अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी और महामनस्वी रावण ने उसे क्षमा कर दिया । अपराध के प्रायश्चित्त स्वरूप उस यक्ष ने वहाँ स्वयंप्रभा नगरी की रचना की।
माता-पिता और सभी परिवारी जनों ने वहाँ आकर तीनों भाइयों को विद्यासिद्धि के उपलक्ष में वधाइयाँ दी और बड़ा उत्सव मनाया।
तदनन्तर रावण ने छह उपवासपूर्वक चन्द्रहास खड्ग सिद्ध किया।
मन्दोदरी सुरसंगीतपुर के विद्याधर राजा मय और रानी हेमवती की अनिंद्य सुन्दरी पुत्री थी। सुरसंगीतपुर वैताढयगिरि की दक्षिण श्रेणी का समृद्ध नगर था और मय समर्थ विद्याधर । उसे पुत्री के , योग्य वर की खोज थी। उसने दोनों श्रेणियों के सभी राजाओं और राज-पुत्रों पर दृष्टि दौड़ाई किन्तु कोई भी उसे नहीं जंचा।
एक दिन वह मन्त्री से बोला--मन्त्रिवर ! पुत्री के लिए योग्य वर दिखाई नहीं देता। ।
मन्त्री ने उत्तर दिया-महाराज ! आप खेद न करें। एक हजार अलभ्य विद्याओं का स्वामी रत्नश्रवा का पुत्र दशमुख सभी प्रकार
१ विभीषण को उसकी इच्छानुसार बड़ी से बड़ी विपत्ति में धर्म से विचलित न होने वाली बुद्धि प्राप्त हुई, साथ ही अमरत्व ।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड] २ मन्दोदरी का पिता 'मय' (दानव) कश्यप ऋषि की पत्नी दिति का पुत्र था और उसकी पत्नी हेमा अप्सरा थी।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]