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४३२ | जैन कथामाला (राम-कथा)
बड़ी कठिनाई से अधिकारी विजय बोला- -लोग कहते हैं कि स्त्री लोलुपी रावण सीताजी का हरण करके ले गया। उसने राजी से अथवा बलात्कारपूर्वक उन्हें अवश्य दूषित कर दिया होगा। • सीता का अपवाद सुनकर राम स्तम्भित रह गये। उन्हें स्वप्न । में भी आशा न थी कि अयोध्या की प्रजा सीता के प्रति ऐसे विचार प्रस्तुत करेगी। किन्तु धैर्यशाली पुरुष घोर दुःख में भी विचलित नहीं होते । अधिकारियों को आश्वस्त किया
-तुम लोगों ने मुझे समय पर सूचना दी। ठीक ही किया। तुम्हारा कर्तव्य ही यह था। विश्वास रखो-एक स्त्री के कारण मैं • अपने कुल की उज्ज्वल कीर्ति पर कलंक नहीं लगने दूंगा।
अधिकारी प्रणाम करके चले गये । राम स्वयं इस अपवाद की • सच्चाई जानने के लिए वेष बदलकर अयोध्या को गलियों में रात्रि के
समय घूमने लगे । स्थान-स्थान पर उन्हें यही सुनाई पड़ता- . ___'राम तो सीता के मोह में अन्धे हो गये हैं। सीता दूषित नहीं
है-इसे कौन मान लेगा?' । . राम विचारने लगे–'सीता महासती है किन्तु मेरा कुल कलंकित हो रहा है। अब क्या करूँ ?' उनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया। उन्होंने विशेष छान-बीन के लिए गुप्तचरों को नियुक्त कर दिया। __ गुप्तचरों ने आकर लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि की उपस्थिति में ही स्पष्ट स्वर में राम को बताया कि 'अयोध्या में सीताजी के चरित्र के प्रति अपवाद फैल गया है और कुल की कीर्ति कलंकित हो रही है।' ___-माता सीता के चरित्र की निन्दा ? कौन कर रहा है ? -मैं उसके वंश को ही मिटा दूंगा। -क्रोधित होकर लक्ष्मण गरजे। '