________________
सपत्नियों का षड्यन्त्र | ४३३
श्रीराम ने उन्हें रोकते हुए कहा
- भाई ! पहले मुझसे राज्य के उच्चाधिकारियों ने कहा था ।
y
मैंने स्वयं अपने कानों से भी सुना और फिर इन लोगों को नियुक्त किया था। अयोध्या में सीता का अपवाद फैल ही रहा है ।
- कौन है इसकी जड़ में ? किसने फैलाया यह अपवाद ? — कोई भी हो ? किसी ने भी फैलाया हो ? अब तो सीता के परित्याग के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है ।
राम के इन वचनों को सुनकर सभी पर वज्रपात हो गया । लक्ष्मण ने आग्रह किया
- नहीं भैया ! ऐसा मत कहो ।
— कुल-कीर्ति की रक्षा के लिए सीता परित्याग करना ही पड़ेगा । लक्ष्मण राम के चरणों में गिर पड़े। रोते-रोते कहने लगे
- भैया ! कैसे सहन हो सकेगा उनका वियोग ? मेरे तो प्राण ही निकल जायेंगे ।
राम ने अपना कुसुम कोमल हृदय वज्र से भी कठोर बना लिया था । कड़ककर डाँट दिया
- कुछ मत कहो, लक्ष्मण !
अग्रज का ऐसा रूप उन्होंने जीवन में प्रथम वार ही देखा था । उत्तरीय से मुख ढाँककर आँसू बहाते महल में चले गये ।
कृतान्तवदन सारथी को बुलाकर राम ने आज्ञा दी
- सीता को सम्मेत शिखर की यात्रा के बहाने ले जाकर किसो निर्जन वन में छोड़ आओ ।
सारथी स्तम्भित रह गया । कुछ वोलने को मुँह खोला तो राम का दृढ़ स्वर गूंज गया - कुछ वोलने की आवश्यकता नहीं । आजा का तुरन्त पालन हो ।