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४२६ | जैन कथामाला (राम- कया)
लक्ष्मण की आज्ञा से अयोध्या की सेना ने प्रयाण किया तो रत्नपुर जाकर ही विश्राम लिया । साथ में श्रीराम भी थे । अनुज के प्रति - अपशब्द वे भी न सह सके ।
कहाँ महाभुज लक्ष्मण और कहाँ राजा रत्नरथ । चींटी पर पसेरी जा पड़ी । लक्ष्मण ने चुटकी बजाते उसे पराजित कर दिया ।
उसने श्रीराम को श्रीदामा और लक्ष्मण को मनोरमा नाम की अपनी पुत्रियाँ अर्पण कीं ।
वैताढ्यगिरि की समस्त दक्षिण श्रेणी को जीतकर रामलक्ष्मण दोनों भाई सेना सहित अयोध्या लौट आये और सुख से रहने लगे ।
वासुदेव लक्ष्मण के सोलह हजार रानियाँ थीं। इनमें से आठ थीं पटरानियाँ - विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रत्नमाला, जितपद्मा, अभयवती और मनोरमा । इन आठ पटरानियों से उनके आठ प्रमुख पुत्र हुए।
विशल्या का पुत्र श्रीधर, रूपवती का पुत्र पृथ्वीतिलक, वनमालाका पुत्र अर्जुन, जितपद्मा का पुत्र श्रीकेशी, कल्याणमाला का पुत्र मंगल, मनोरमा का पुत्र सुपार्श्वकीर्ति, रीतिमाला का पुत्र विमल
१ लक्ष्मण की पृथ्वी सुन्दरी आदि सोलह हजार रानियाँ थीं और राम के आठ हजार । ( श्लोक ६६३ )
इसके बाद दोनों भाइयों की विभूति का वर्णन है ।
२
राम के देव के समान विजय राम नाम का पुत्र हुआ और लक्ष्मण के चन्द्रमा के समान पृथ्वीचन्द्र नाम का पुत्र |
( श्लोक ६९० )