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________________ ४२४ | जैन कयामाला (राम-कथा) मनोरमा ने तो वे उसकी सुन्दरता को सराहने लगे। नारद ने राजा से पूछा -राजन् ! कन्या युवती हो गई है, कहीं इसके विवाह की चर्चा भी चलाई या नहीं। युवती कन्या के माता-पिता को एक ही चिन्ता होती है योग्य वर की । जो भी मिले, जरा-सी सहानुभूति दिखा दे उसी से किसी योग्य युवक की वात पूछ बैठते हैं । रत्नरथ ने भी प्रतिप्रश्न कर दिया -आप ही बताइये। आप तो निरन्तर भ्रमण करते रहते हैं। आप से अधिक जानकारी और किसे हो सकती है ? -मेरी सम्मति में जैसी रूपवती तुम्हारी पुत्री है उसके योग्य वर तो अयोध्यापति लक्ष्मण ही हैं। -नारदजी ने अपनी सम्मति दे दी। .' यह सुनते ही गोत्र-वैर के कारण रत्नरथ के पुत्रों को कोप चढ़ आया । 'इस ढीठ को मारो' यह कहकर ज्योंही वे उठकर खड़े हए त्योंही जान बचाकर नारदजी वहाँ से भाग निकले। ____ नारद को अपना अपमान खल गया । वे सीधे लक्ष्मणजी के पास. अयोध्या पहुँचे । अयोध्या की राजसभा में प्रवेश करते ही सम्पूर्ण सभा ने उनका उचित सत्कार किया। लक्ष्मण ने देखा कि नारदजी के हाथ में एक चित्रफलक और है। उत्सुकतावश उन्होंने पूछ लिया -देवपि ! आपके हाथ में नया उपकरण कैसा? --उपकरण नहीं एक चित्र है ! देखिए । नारदजी ने चित्र लक्ष्मणजी की ओर बढ़ा दिया । चित्र हाथ में लेते हए लक्ष्मण ने विनोद किया-- -धन्य हो देवपि ! अव युवतियों के चित्र भी साथ रखने लगे।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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