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विभीषण का राज्यतिलक | ४०३ नारदजी इतनी देर तक चुपचाप बैठे राम और विभीषण का वार्तालाप.सुन रहे थे । वे बोले___-विभीषणराज ! अयोध्या में दूत भेजने की आवश्यकता नहीं। मैं स्वयं यह समाचार राजमहल में पहुँचा दूंगा।
-बड़ी कृपा होगी, मुनिवर ! -राम और विभीषण का समवेत स्वर निकला।
देवर्षि लंका से चलकर अयोध्या पहुंचे और उन्होंने राम के .सपरिवार आगमन का समाचार सुना दिया। नारदजी तो अपनी राह । चले गये और अयोध्या में हर्ष को लहर दौड़ गई।
लंका के कुशल कारीगरों और शिल्पियों ने अयोध्यापुरी को सोलह दिन में ही स्वर्गपुरी से भी अधिक सुन्दर बना दिया।
__-त्रिषष्टि शलाका ७८ उत्तर पुराण ६८।६३२-६६१
राम को उसे ग्रहण करने की प्रेरणा दी तव श्रीराम ने उन्हें स्वीकार :किया।
[युद्धकाण्ड] [नोट-इस प्रकार सीता की अग्नि-परीक्षा लंका के बाहर ही खुले . मैदान में देवताओं और वानर-भालुओं की उपस्थिति में हुई।
.. -सम्पादक] (३) यहां अयोध्या जाने की प्रेरणा नारद ने नहीं वरन् अन्य देवताओं ने दी है और वहीं से राम-लक्ष्मण-सीता आदि सभी वानरों सहित पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या की ओर चल दिये । मार्ग में सीता की प्रार्थना पर तारा आदि (यहाँ तारा सुग्रीव की पत्नी बताई है) सुग्रीव की पत्नियाँ तथा अन्य वानर-पत्नियों को भी साथ लिया और अयोध्या के समीप जा - पहुंचे।
[युद्धकाण्ड]