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भरत और कैकेयी की मोक्ष-प्राप्ति
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__ सोलहवें दिन राम-लक्ष्मण अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या की ओर चल दिये। उनके पीछे-पीछे भामण्डल, सुग्रीव, विभीषण आदि भी थे । अल्पकाल में ही वे सब अयोध्या आ पहुँचे । साथ ही भुवनालंकार हाथी भी था। , वड़े भाइयों का स्वागत करने हेतु भरत और शत्रुघ्न गजेन्द्र पर सवार होकर वाहर निकले। दूर से ही राम-लक्ष्मण का विमान देखकर वे हाथी से नीचे उतरे। विमान जैसे ही पृथ्वी पर टिका राम-लक्ष्मण भी उतरकर आगे बढ़े। भरत ने राम के चरण पकड़कर उन्हें प्रणाम किया। राम ने उसे उठाकर कण्ठ से लगा लिया। चारों भाई परस्पर मिले । सुखाश्रुओं की सरिता वहने लगी। .
वड़े उत्सव के साथ चारों भाइयों ने पुष्पक विमान में वैठकर अयोध्या में प्रवेश किया। नगरवासियों ने दिल खोलकर उनका स्वागत किया। मंगल-वाद्य बज रहे थे, सन्नारियाँ स्वागत गीत गा रहीं थीं।
विमान से उतरकर राम-लक्ष्मण-सीता मातृगृह में गये। रानी अपराजिता पुत्रों को सकुशल देखकर प्रसन्न हो गई। सभी माताओं को उन्होंने प्रणाम किया। सीताजी ने भी सबके चरण छुए । विशल्या आदि ने भी परिचय देकर सासुओं (पति की माता) के चरण स्पर्श