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४०२ | जैन कथामाला (राम-कथा)
-इस अवधि के पश्चात हम एक दिन भी नहीं ठहरेंगे।
-विल्कुल नहीं, एक क्षण भी नहीं, मैं भी आपके साथ चलूंगा और माताओं के दर्शन तथा भरत शत्रुघ्न से भेंट करके स्वयं को कृतार्थ मानूंगा। -विभीषण ने राम को आश्वस्त कर दिया ।
विशेष-विभीपण के राज्याभिषेक के पश्चात् लक्ष्मण की दिग्विजय का उल्लेख है । दोनों भाई दिग्विजय करके अयोध्या जा पहुंचे।
[उत्तर पुराण : श्लोक ६३२-६६१] वाल्मीकि रामायण के अनुसार
(१) श्रीराम ने रावण वध के बाद भी लंका में प्रवेश नहीं किया । विभीपण का राज्याभिषेक भी रावण के दाह-संस्कार के पश्चात् वहीं समीप के एक उत्तम स्थान पर लक्ष्मण द्वारा करा दिया गया।
[युद्धकाण्ड] - (२) जानकी को विभीषण की आज्ञा से हनुमान वहाँ लाये । श्रीराम ने उन्हें अस्वीकार करते हुए कहा-'अपने तिरस्कार का बदला चुकाने के लिए मनुष्य का जो कर्तव्य है, मैंने किया। अपने सम्मान के लिए रावण पर विजय पायी, तुम्हें प्राप्त करने के लिए नहीं; सदाचार की रक्षा, अपने को अपवाद से मुक्त रखने और अपने विख्यात वंश का कलंक मिटाने के लिए ही यह सब किया है । तुम्हारे चरित्र में सन्देह का अवसर उपस्थित है । कौन ऐसा कुलीन पुरुष होगा जो तेजस्वी होकर भी दूसरे के घर में रही हुई स्त्री को ग्रहण करेगा ? अतः अब तुम जहाँ जाना चाहो, जा सकती हो ।'
यह सुनकर रोती हुई जानकी ने स्वयं ही लक्ष्मण से चिता तैयार कराके अग्नि-प्रवेश किया। अग्निदेव स्वयं उस चिता को फोड़कर प्रगट हुए और सीता के सती होने की साक्षी दी। अन्य देवों ब्रह्मा आदि ने भी सीता को निष्कलंक बताया । श्रीराम के पिता दशरथ भी देवलोकवासी हो गये थे उन्होंने भी सती सीता के निर्मल चरित्र की साक्षी देकर