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: १६: बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि
राम के कटक की प्रसन्नता भरी आवाजों से रावण का कुतूहल जाग्रत हो गया । तभी गुप्तचरों ने आकर सूचना दी - 'लक्ष्मण जीवित हो उठे हैं ।' इस समाचार को सुनकर रावण के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। बड़ी कठिनाई और अपनी सर्वश्रेष्ठ शक्ति के प्रयोग से तो वह लक्ष्मण को मूच्छित कर पाया और वह भी स्वस्थ हो गये । उसके मुख पर निराशा स्पष्ट खेलने लगी । तुरन्त मन्त्रियों को बुलवाया और उनसे सलाह करने लगा -अव क्या किया जाय ?
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मन्त्रियों के हृदय काँप रहे थे। उन्हें दोनों ओर से भय था । यदि सीताजी को लौटाने की सम्मति देते हैं तो रावण के कोप का भाजन बनना पड़ता है और नहीं तो लंका का विनाश स्पष्ट ही है ! मन्त्रियों ने ऐसे संकटकाल में स्वहित को त्यागकर देशहित को सामने रखा। उन्होंने कहा
- महाराज ! राम की अनुनय के सिवाय और कोई उपाय नहीं । अनुनय शब्द दम्भी रावण को बुरा लगा । वह बोला- अनुनय तो जीवन में मैं कभी कर नहीं सकता । किसी मनुष्य का अनुनय करे और वह भी दशमुख, यह असम्भव है । कोई और युक्ति सोचिए आप लोग ।
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