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( ३७ ) भी नहीं । वह विवेकी, भ्रातृप्रेमी, अतिवली और निर्भीक है। सीताहरण के प्रसंग पर वह रावण की निर्भीक आलोचना करता है । वह सीता को लौटाने, का आग्रह भी करता है । युद्धभूमि में आकर राम की सेना के सभी सुभटों को हतप्रभ कर देता है । वही एक मात्र ऐसा योद्धा है जो हनुमान को अपनी बगल में दवाकर लंका की ओर चल देता है ।।
' जैम परम्परा में वह मुक्त भी होता है किन्तु अपनी तपस्या द्वारा; राम के बाण द्वारा वीर गति प्राप्त करके नहीं। विभीषण
विभीषण राम-कथा का ऐसा पात्र है जिसका रूप वैदिक परम्पस में. द्विविध है । एक ओर तो उसे गद्दार माना गया और उसके नाम पर ही 'घर का भेदी लंका ढावे' जैसी लोकोक्ति बनी; आज भी वह आदि-गद्दार माना जाता है और किसी भी गद्दार व्यक्ति को विभीषण के नाम की उपाधि. से अलंकृत किया जाता है । दूसरी ओर उसे राम का परमभक्त माना जाता. है । इस द्विविध वर्णन का कारण यह है कि राक्षस जाति और देश के प्रति तो उसका व्यवहार गद्दारी का रहा किन्तु श्रीराम के प्रति भक्तिपूर्ण । वैदिक परम्परा में राम को विष्णु का अवतार माना गया है और रावण उनका विरोधी था अतः विभीषण की गद्दारी उनके कार्य सम्पन्न होने में सहायक हई
और भगवान की सहायता करने वाले को परमभक्तं की उपाधि से सुशोभित किया गया।
विभीषण राम-रावण युद्ध में पग-पग पर राम की सहायता करता है, उन्हें रावण और राक्षस जाति के गुप्त भेद बताता है, मेघनाद के यज्ञ विध्वस की प्रेरणा देता है, एक शब्द में कहें तो वह राम की रावण पर विजय प्राप्ति का प्रमुख कारण है । इस सब सेवा के बदले उसे लंका का राज्य प्राप्त हआ और मिला अमर रहने का वरदान तया भक्त शिरोमणि की उपाधि । __ जैन परम्परा का विभीषणं यद्यपि श्रीराम से आ मिलता है किन्तु वह उन्हें रावण के गुप्त भेद नहीं बताता । वह ऐसा कोई कार्य नहीं करता जिससे उसे गद्दार कहा जा सके । उसका भ्रातृप्रेम भी उच्चकोटि का है।