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दोनों ही परम्परानों में उसे सदाचारी, विवेकी भौर धर्मपरायण के रूप.
में चित्रित किया गया है ।
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चन्द्रनखा ( शूर्पणखा )
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वैदिक परम्परा की शूर्पणखा एक स्वच्छन्द कामान्ध नारी है । उसका वर्णन दो ही स्थानों पर मिलता है । प्रथम, जब रावण कालकेयं दानवों पर विजय करने के बाद आता है तो वह विधवा के रूप में दिखाई गई है । वह कहती है – 'तुमने मेरे पति विद्युज्जिह्न को मार कर मुझे विधवा बना दिया ।" तव रावण उसे दण्डकवन की रक्षार्थ नियुक्त किये खर के साथ रख देता है । दूसरी बार वह तव दिखाई देती है जब वह अनायास ही राम लक्ष्मण के पास पहुँचकर काम-याचना करने लगती है । अपनी याचना ठुकराये जाने और अपमानित एवं कुरूपित होने पर वह पहले तो खर को भड़काती है और फिर रावण को । इस प्रकार राम-रावण युद्ध का कारण उसकी अतृप्त वासना और बदले की बाग है ।
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जैन परम्परा की चन्द्रनखा विकृत मुख वाली नहीं है । वह अनायास ही. ढण्डकवन नहीं पहुँच जाती है । उसके राम-लक्ष्मण के पास पहुँचने का स्पष्ट कारण है । लक्ष्मण के हाथों उसके पुत्र शंबूक का वध हो गया है और वह उनके पद-चिह्न देखती हुई उनके पास तक जा पहुंचती है। हाँ, इतना दोनों परम्पराओं को मान्य है कि चन्द्रनखा ( शूर्पणखा ) ही सीता हरण का प्रमुख कारण रही। उसी ने एक ओर तो पुत्र की हत्या का बदला लेने के लिए खर को भडकाया मोर राम-लक्ष्मण का प्राणान्त करने भेजा और दूसरी ओर रावण को सीता के अनुपम रूप का वर्णन करके सीताहरण के लिए प्रेरित किया । इतना होने पर भी जैन दृष्टि से चन्द्रनखा न तो स्वच्छन्द नारी है ओर न कामुक ।
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इन पात्रों के अतिरिक्त अन्य सभी पात्रों का वर्णन जैन परम्परा में सहानुभूतिपूर्वक हुआ है । जैन दृष्टि से राक्षस जाति मूलतः धर्म-विरोधी नहीं
१ वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड ६३ | ४ |