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३५० | जैन कथामाला (राम-कथा) ने भी प्रहस्त को मार गिरायां । देवताओं ने नल-नील पर पुष्पवृष्टि करके हर्ष प्रगट किया।
हस्त-प्रहस्त की मृत्यु से रावण-दल के योद्धा कुपित हो गये। मारीच, सिंहजघन, स्वयंभू, सारण, शुक्र, चन्द्र, अर्क, उद्दाम, वीभत्स कामाक्ष, मकर, ज्वर, गभीर, सिंहस्थ और अश्वरथ आदि वीर एक साथ युद्ध में उतर पड़े। । राम की ओर से मदनांकुर, संताप, प्रथित, आक्रोश, नन्दन, दुरित, अनघ, पुष्पास्त्र, विघ्न तथा प्रीतिकर आदि वानरवीर मैदान में आकर शत्रुओं से जूझने लगे। अनेक अस्त्रों से युद्ध करते हुए मारीच राक्षस ने संताप वानर को, नन्दन वानर ने ज्वर राक्षस को, उद्दाम राक्षस ने विघ्न वानर को, दुरित वानर ने शुक्र राक्षस को, और सिंहजघन राक्षस ने प्रथित वानर को तीन और तीक्ष्ण आघातों से व्यथित कर दिया। __ तव तक सध्न्याकाल आ गया और अंशुमाली पश्चिम में अस्त हो गये।
राम और रावण को सेना युद्ध बन्द करके अपने-अपने शिविरों में लौट गई। . दोनों ओर के सैनिक अपने-अपने घायलों और मृतकों को खोजने लगे।
हस्त-प्रहस्त की मृत्यु और नल-नील की विजय के साथ युद्ध का प्रथम दिवस समाप्त हुआ।
-त्रिषष्टि शलाका ७७ -उत्तर पुराण ६५।५०५-५१५