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३४६ | जैन कथामाला (राम-कथा)
-स्वामी ! विभीषण ने कहा था सीताजी को वापिस लौटा दो . और अपने दुष्कर्म पर पश्चात्ताप करो। इसी पर बात बढ़ गई और विभीषण को देश निकाला मिल गया।
-ओह ! मैं उसे लंका का राज्य दे दूंगा। -राम स्वयं ही वचनवद्ध हो गये।
राम की आज्ञा से विभीषण को अन्दर लाया गया। विभीषण ने उनके चरणों में मस्तक नवाकर अपनी सम्पूर्ण गाथा कह सुनाई। अन्त में वोला
-प्रभु ! सुग्रीव के समान ही मेरी भी रक्षा कीजिए।
करुणावत्सल राम ने उसे अभय दिया और साथ ही लंका का स्वामी बनाने का वचन भी ।
-त्रिषष्टि शलाका, ७७ -उत्तर पुराण पर्व ६८, श्लोक ४६८-७०
तथा ४७३-५०४