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________________ : १० : विभीषण का निष्कासन हनुमान ने आकर सर्वप्रथम जानकीजी का सन्देश कहा । राम कभी चूड़ामणि को नेत्रों से लगाते और कभी हृदय से। उनके हृदय की विह्वलता को कौन जान सकता है ? हनुमान ने ही आगे कहा -प्रभू ! अभिमानी रावण अपनी हठ से रंचमात्र भी नहीं हिला। युद्ध के बिना माता-सीता को आपके दर्शन नहीं हो सकेंगे और यदि उन्हें आप नहीं मिले तो....... आगे के शव्द हनुमान वोल नहीं सके। उनका कण्ठ अवरुद्ध हो गया । सुग्रीव, भामण्डल आदि राजा वोल उठे-प्रभु ! अव देर किस बात की है। हनुमान बोल उठे -आपका समाचार पाकर ही महासती ने बड़े आग्रह के पश्चात् भोजन किया था। स्वामी ! वे इक्कीस दिन से निराहार थीं। ___सती के त्याग ने राम को हिला दिया। वे उछलकर खड़े हो गये। उनका आदेश गंजा -शीघ्र प्रयाण किया जाय । सभी तैयार थे। तुरन्त उठ खड़े हुए और विद्यावल से राम को सेना ने आकाश-मार्ग से लंका की ओर प्रयाण कर दिया।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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