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विभीषण का निष्कासन | ३४१ सैन्य सहित आकाश में उड़ते हुए श्रीराम शीघ्र ही वेलंधर पर्वत पर स्थित वेलंधरपुर के समीप आये। नगराधीश समुद्र और सेतु दो राजा उद्धत होकर सेना के अग्रभाग से युद्ध करने लगे।
स्वामी की सेवा में चतुर और पराक्रमी नल ने समुद्र राजा और नील ने सेतु राजा को बाँधकर श्रीराम के सम्मुख पेश कर दिया।
कृपालु राम उन्हें वन्धनग्रस्त न देख सके । उन्होंने उन दोनों को क्षमा करके पुनः राज्यासीन कर दिया। महापुरुष स्वभाव से ही दयावान होते हैं । कृतज्ञ राजा समुद्र ने अपनी तीन रूपवती कन्याएँ लक्ष्मणजी को देकर अपनी स्वामिभक्ति प्रगट की।
रात्रि वहीं व्यतीत करके श्रीराम समुद्र और सेतु राजा के साथ ससैन्य आगे चल दिये। सुवेलगिरि के समीप आये तो वहाँ के उद्धत राजा ने विरोध किया। सेना ने उसका विरोध क्षण भर में दवा दिया। एक रात्रि वहीं विश्राम करके राम का कटक आगे बढ़ा।
तीसरे दिन लंका के पास आकर हंसद्वीप के राजा हंसरथ को वशीभूत करके राम की सेना वहाँ विश्राम करने लगी। '
राम के आगमन का समाचार लंका में भी पहुंच गया । सभी नगर-निवासी क्षुभित होकर प्रलयकाल को आशंका करने लगे।
. हस्त, प्रहस्त, मारीच और सारण आदि हजारों सुभट युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गये। रणभेरी वजने के साथ ही राक्षसों में युद्धोन्माद बढ़ने लगा। । उसी समय विभीषण ने राजसभा में आकर रावण से विनय की -क्षण भर को शान्तचित्त मेरी बात सुन लीजिए, लंकापति !
विभीपण के यह शब्द सुनते ही सभा मौन हो गई। रावण ने. आज्ञा दी-कहो विभीषण ! क्या कहना चाहते हो? .