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रावण का मुकुट-भंग | ३३६ नर-नारी भयभीत हो गये । उन्होंने समझा कि सम्भवत: भूचाल आ गया है ।
सीताजी ने उछलकर आकाश में उड़ते हुए रामदूत को देखा तो समझ गई कि यह सव हनुमान की ही करतूत है । उनके हृदय से मंगल कामनाएँ निकलने लगीं ।
रामदूत चले जा रहे थे, अपने स्वामी की ओर ।
- त्रिषष्टि शलाका ७७
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