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- ३२८ | जैन कथामाला (राम-कथा)
बिल्ली को स्वप्न में भी चूहे नजर आते हैं । तुरन्त मन्दोदरी से बोला
- देवि ! तुम तुरन्त जाकर सीता को समझाओ ।
- क्यों ! ऐसा क्या परिवर्तन हो गया उस सती में ? विस्मित सी मन्दोदरी ने पूछा ।
- परिवर्तन ? आज वह मुस्कराई है। वह राम को भूल गई और मेरे साथ क्रीड़ा है । – रावण के मुख पर प्रसन्नता की लहर आ गई ।
मुझे ऐसा लगता है कि करने की इच्छा कर रही
- आपका भ्रम है, नाथ ! सुमेरु हिल सकता है मगर सीता ........ वह महासती रंच मात्र भी नहीं हिलेगी ।
— मेरी मनोकामना पूरी होने वाली है तो तुम अड़ंगा वन गई ।
- नहीं स्वामी ! मैं क्यों अड़ंगा बनूंगी ?
- तो तुरन्त जाओ और उसे अपनी चतुराई से मेरे अनुकूल वनाओ । 'जो आज्ञा' कहकर मन्दोदरी चली और सीधी सीता के समीप जा पहुँची । सीता को लुभाने के लिए मनोहर वचन कहने लगी
- हे जानकी ! तीन खण्ड के स्वामी के पास चलो और उसे स्वीकार करो ! मैं तथा अन्य पत्नियाँ दासी बनकर तुम्हारी सेवा करेंगीं । लंकेश तुम्हारे चरणों में अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि और समृद्धि न्यौछावर कर देगा ।
मन्दोदरी के इन शब्दों को सुनकर सीता के ललाट पर बल पड़ गये । वह कुपित होकर बोली
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– अरे कामान्ध की दूती ! तुम फिर यहाँ चली आई | रावण - को स्वीकार करने की तो बात ही क्या ? उसका मुख भी कौन