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लंका में प्रवेश | ३२६ देखे। मुझे उससे, तुमसे और उसकी ऋद्धि-समृद्धियों से हार्दिक घृणा है। ___ -तो क्या त्रिजटा ने झूठ बोला था । तुम्हारे मुख पर मुस्कराहट नहीं आई थी? --आई थी ? क्यों नहीं आवेगी ? -सीता ने व्यंगपूर्वक कहा। -लंकेश तो समझे कि उनकी इच्छा पूर्ण होने वाली है।
-अवश्य पूरी होगी तुम्हारे पति की इच्छा ! वत्स लक्ष्मण आने ही वाले हैं। यमपुरी भेजकर उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण कर देंगे । सुनो मन्दोदरी ! मेरे पास मेरे प्रभु राम का संकेत आया था और यही रहस्य था मेरी मुस्कराहट का । ___मन्दोदरी विस्मित होकर सुन रही थी और सीता कहती जा रही थी
-जाओ, जल्दी से अपने पति को उसकी मृत्यु का समाचार सुना दो, जल्दी करो, चली जाओ यहाँ से। -सीता चीख-सी पड़ी।।
सीता के इस रूप की आगा मन्दोदरी को बिल्कुल न थी। सती के इन शब्दों को सुनकर उसका हृदय धक् से रह गया, आँखों के सामने अँधेरा छा गया, पृथ्वी धूमने सी लगी। वह जानती थी कि सती के वचन मिथ्या नहीं हो सकते । बड़ी कठिनाई से वह रथ पर सवार हुई और राजमहल की ओर चल दी।
मन्दोदरी के जाने के पश्चात् हनुमान प्रगट हुए और प्रणाम करके अंजलि बाँधकर वोले
-हे देवी ! मैं राम का दूत हूँ। आपकी खोज करने उनकी आजा से यहाँ आया हूँ। मेरे जाते ही राम-लक्ष्मण लंका पर चढ़ाई कर देंगे। ___ सीता के नेत्रों में आँसू भर आये। राम के दूत को देखकर उन्हें हर्ष भी हुआ और अपनी दशा पर विपाद भी । पूछने लगीं