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: ७ : उपसर्ग शान्ति
हनुमान का शीघ्रगामी विमान आकाश मार्ग से चला जा रहा था। मार्ग में महेन्द्रगिरि का शिखर दिखाई दिया। वहीं उनके नाना (मातामह) का नगर था महेन्द्रपुर । नगर पर दृष्टि पड़ते ही हनुमान को क्रोध आ गया। वह विचार करने लगे-'यह मेरे नाना का नगर है। इन्होंने ही मेरी निरपराधिनी माता को घर से निकाल दिया था।'
माता के अपमान की कहानी ने हनुमान के रक्त को गरमा दिया। उनकी भूजाएँ फड़क उठीं । वदला लेने और सबक सिखाने की दृष्टि से हनुमान ने कुपित होकर रणभेरी वजा दी।
त्रु को आया जानकर राजा महेन्द्र भौंचक्के रह गये । वे आनन फानन में तैयार हुए और सेना लेकर नगर से वाहर रणक्षेत्र में आ डटे।
दोनों में युद्ध प्रारम्भ हो गया। एक ओर अकेले हनुमान और दूसरी तरफ राजा महेन्द्र, उसका पुत्र प्रसन्नकीति और महेन्द्रपुर की पूरी सेना।
हनुमान ने अकेले ही सेना भंग कर दी। उसके प्रबल पराक्रम को देखकर प्रसन्नकीर्ति सम्मुख आया। दोनों वीर युद्ध करने लगे। युद्ध करते-करते हनुमान को विचार आया-'मैं व्यर्थ ही राम के कार्य .