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सीता की खोज
राम सीता के विरह में व्याकुलं थे और सुग्रीव सुख में मग्न । राम की कृपा से उसे किष्किधा का राज्य पुनः प्राप्त हुआ और वह राम को ही भूल गया । राम के पास लक्ष्मण भी आ चुके थे। उनका दुःख उन्हें शूल की भाँति चुभता, सुग्रीव की उपेक्षा पर क्रोध भी आता लेकिन मन मसोसकर रह जाते । भाई की आज्ञा पाये बिना वे कुछ नहीं करना चाहते थे।
एक दिन राम ने अनुज लक्ष्मण से कहा
-भाई ! ऐसा मालूम होता है कि सुग्रीव अपना वचन भूल गया । तुम जरा उसे याद दिला आओ।
लक्ष्मण तो हृदय से यही चाहते थे। आजा की देर थी तुरन्त प्रणाम करके चल दिये । वीर लक्ष्मण की मुख-मुद्रा भयंकर थी, नेत्र लाल थे और होठ फड़क रहे थे। __ राजमहल के द्वारपाल उनके इस भयंकर रूप को देखकर काँप उठे। किसी का साहस न हुआ कि उन्हें रोके । लक्ष्मण धड़धड़ाते हुए महल में घुस गये । दास-दासियों ने उनके आगमन की सूचना तुरन्त दौड़कर सुग्रीव को दी। वह अन्तःपुर से निकलकर वाहर आया तो लक्ष्मण एकदम फट पड़े