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________________ सीता पर उपसर्ग | ३०६ - वृत्तान्त याद कीजिए । आपने मुझे कैसा फटकारा था ? - विभीषण ने रावण को पिछली घटना याद दिलाने का प्रयास किया । - वह युद्धस्थल था । तब और अब की मेरी शक्ति में जमीन आसमान का अन्तर है । - क्या शक्ति प्राप्त होने के वाद अधर्म धर्म हो जाता है ? - विभीषण के स्वर में कुछ व्यंग का पुट आ गया । भड़क उठा लंकेश | उत्तेजित होकर बोला— - तुम देखना सीता मेरे अनुकूल हो जायगी और राम-लक्ष्मण को मैं मार डालूंगा । विभीषण ने बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा। वह नमस्कार करके इस प्रकार मन्दोदरी का उत्तर पुराण में दूसरा ही रूप दिखाया गया है । वाल्मीकि रामायण में सीता पर एक और भयंकर उपसर्ग दिखाया गया है जव श्रीराम की सेना ने समुद्र पर पुल बना लिया तथा रावण का मनोवल कुछ क्षीण हो गया । उसने एक अन्य मायावी राक्षस विद्युज्जिह्व ( यह शूर्पणखा का पति नहीं था, कोई अन्य मायावी राक्षस था; क्योंकि शूर्पणखा का पति तो वरुण युद्ध से पहले ही रावण द्वारा मारा जा चुका था) की सहायता से सीताजी को राम का कटा हुआ सिर ( यह सिर मायामयी या असली नहीं) दिखाया । सीताजी उसे देखकर रोने लगी । रावण अपनी विजय के गीतं गाने लगा । उसी ममय एक राक्षस की प्रार्थना पर वह वहाँ से चला गया । तव सरमा नाम की राक्षसी ( विभीषण की पत्नी) ने उसे सच्चाई बताकर आश्वासन दिया । उसके आश्वासन से सीता का शोक कम हुआ । ( युद्धकाण्ड)
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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