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२६२ | जैन कथामाला (राम-कथा)
सभी भ्रमित थे। अतः सेना दो भागों में बँट गई । सात अक्षोहिणी असली सुग्रीव की ओर और सात अक्षोहिणी नकली की तरफ।
भयंकर युद्ध हुआ। सेना कुछ तो कट मरी और कुछ विह्वल होकर युद्ध-क्षेत्र ही छोड़ गई। अन्य सुभटों के अभाव में दोनों वीर मल्लयुद्ध करने लगे। नकली ने असली को मार-पीटकर भगा
दिया।
विजयी नकली सुग्रीव पुनः राजमहल में जा पहुंचा और पराजित . असली सुग्रीव नगर के वाहर । ___ असली सुग्रीव ने अपनी सहायता के लिए पवनपुत्र हनुमान को बुलाया। पवनपुत्र के समक्ष दोनों में पुनः मल्ल युद्ध हुआ परन्तु हनुमान भी असली-नकली का भेद न कर सका और तटस्थ दर्शक की भॉति खड़ा रहा । अबकी बार तो नकली ने असली को रुई की तरह धुनक दिया। प्राण बचाकर भागा असली सुग्रीव तो सीधा नगर से वाहर आकर ही रुका । उसका साहस जवाब दे गया था। ____ अंजनीसुत हनुमान भी निरुपाय होकर चले गये । सुग्रीव निराशानद में डूब गया।
वह विचार करने लगा-'ऐसी कठिन परिस्थिति में किसकी सहायता लूं ? रावण की? नहीं, वह तो परस्त्री लंपट है दोनों को मारकर तारा को बलात् ले जायगा। पाताललंकापति खर की ? - वह तो लक्ष्मण ने मार डाला । तो राम की ही सहायता लूँ ? वे भी स्त्री वियोग से दुःखी है और मैं भी ! मेरी पीड़ा को जितनी अच्छी तरह वे समझेंगे दूसरा कोई नहीं।'
निर्णय करके उसने अपना दूत पाताल लंका में भेजा । दूत के मुख से सब कुछ सुनकर विराध ने उत्तर दिया,