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नकली सुग्रीव | २६१ विद्या सिद्ध की थी और अव विद्या सिद्ध होने पर वह सुग्रीव का-सा रूप बनाकर राजमहल में प्रवेश कर गया था। ... निराश असली सुग्रीवः वहाँ से चला आया। जव युवराज चन्द्र. रश्मि ने ही उसे न पहिचाना तो और चारा भी क्या था? ..... .... किन्तु दो सुग्रीवों को देखकर चन्द्ररश्मि के हृदय में भी शंका हो गई । नकली सुग्रीव राजमहल में तो प्रवेश कर गया परन्तु चन्द्ररश्मि ने उसे अन्तःपुर में जाने से रोक दिया। उसने दास-दासियों और रक्षकों को स्पष्ट आदेश दिया, 'जव तक . असली-नकली का निर्णय न हो जाय, किसी भी सुग्रीव को अन्तःपुर में मत जाने दो।' .. ..... ............ .......
युवराज के आदेश का पालन हुआ और नकली सुग्रीव की इच्छा मन की मन में ही रह गई । राजमहल में छलपूर्वक प्रविष्ट होकर भी वह तारा को न पा सका।
प्रातः चौदह अक्षोहिणी सेना एकत्र हुई। दोनों सुग्रीव खडे थे। सभी भ्रमित हो गये। कौन असली है और कौन नकली.. निर्णय न हो सका । सुग्रीव के पुत्र अंगद और जयानन्द' भी न
पहचान सके।
- से कर दिया । क्षुभित होकर साहसगति क्षुद्र हिमालय में जाकर विद्या .: सिद्ध करने लगा। उसने निश्चय कर लिया था 'वल से या छल से मैं ... तारा को अवश्य प्राप्त करूंगा।'
. . (त्रिषष्टि शलाका ७२ - गुजराती अनुवाद पृष्ठ २१-२२)
अब वह प्रतारणी (इच्छानुसार रूप बनाने वाली) विद्या सिद्ध * करके किष्किंधा आया और असली सुग्रीव की अनुपस्थिति में सुग्रीव
का रूप बनाकर राजमहल में प्रवेश कर गया ।. -सम्पादक १. रानी तारा से सुग्रीव के अंगद और जयानन्द नाम के दो पराक्रमी पुत्र
हुए। (देखिए त्रिषष्टि शलाका ७२ -गुजराती अनुवाद, पृष्ठ २२)