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________________ २६० | जैन कथामाला (राम-कथा) -आप ही कहिए युवराज ! अभी-अभी हमारे राजा अन्दर गये हैं । यह मायावी न जाने कहाँ से आ गया और स्वयं को किष्किधा . नरेश बताता है। चन्द्ररश्मि ने खूब सोच-विचारकर कहा 'इसका निर्णय सार्वजनिक रूप से होगा कि असली राजा सुग्रीव कौन सा है ? युवराज के निर्णय से विस्मित रह गया, सुग्रीव । प्रातः ही तो वह उद्यान-क्रीड़ा हेतु गया था और अभी तो सन्ध्या ही हुई है। लौटकर आया तो कोई दूसरा सुग्रीव ही राजा बना बैठा है। उसका मुख उदास हो गया-धम्म से वहीं बैठ गया वह ! चन्द्ररश्मि ने मधुर स्वर में कहा-. -भद्र ! आप निराश मत होइए। प्रातः सभी के समक्ष वात स्पष्ट हो जायगी कि कौन असली है और कौन नकली? नकली सुग्रीव था विद्याधर साहसगति' । साहसगति विद्याधर चक्रांक का पुत्र था । तारा को पाने के लिए ही तो उसने प्रतारणी १ वैताढ्यगिरि पर ज्योतिःपुर नगर में विद्याधर ज्वलनशिख राज्य करता था। उसकी श्रीमती रानी से तारा नाम की अति सुन्दरी कन्या हुई। पुत्री के युवा होने पर राजा को उसके विवाह की चिन्ता लगी । चक्रांक विद्याधर के पुत्र साहसगति की दृष्टि तारा पर पड़ी। उसने अपने लिए तारा की मांग की। उसी समय वानरेन्द्र सुग्रीव ने भी उसकी याचना की। राजा किसी को रुष्ट करना नहीं चाहता था और दोनों ही साहसगति तथा सुग्रीव अपनी-अपनी जिद पर अड़े थे। ज्वलनशिख ने अपनी समस्या एक निमित्तज्ञानी के सम्मुख रखी तो उसने बताया'सुग्रीव अधिक आयु वाला है और साहसगति की मृत्यु उससे पहले ही हो जायगी।' पुत्री का सुख देखते हुए राजा ने तारा का विवाह सुग्रीव
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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