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सूर्यहास खड्ग | २६६ सीधी पाताल लंका पहुंची । अपने पति खर' को पुत्र वध का सम्पूर्ण शोक समाचार सुनाकर कहा
गया। ट्रैफिक गाइड (नाके पर खड़ा रहने वाला सिपाही) ने देखा एक अतिशय खेदखिन्न व्यक्ति कविस्तान (ईसाइयों के शव गाड़ने का स्थान) के फाटक से बाहर निकल रहा है । आँखें वुझी-वुझी, चेहरा निस्तेज, मानो उसका जीवन-रस ही सूख गया हो। तभी एक स्त्री सामने से आती हुई दिखाई दी।
इस पुरुष की आँखों में अनायास ही चमक आ गई । उसने दौड़कर महिला को पकड़ा और फुटपाथ पर ही उसके साथ बलात्कार कर डाला।
घटना चौंका देने वाली थी। पुत्र-शोक तीव्र कामुकता में कैसे बदल गया। मनोवैज्ञानिकों उस व्यक्ति पर परीक्षण करके बताया कि यह व्यक्ति पुत्रशोक से इतना विह्वल हो चुका था कि इसका विवेक अन्तर्मन की गहराइयों में डूब गया । एक स्त्री के सामने आते ही इसकी नैसर्गिक काम प्रवृत्ति भड़क उठी और उसी आवेग में इसने यह कुकृत्य कर डाला।
उस व्यक्ति ने भी न्यायाधीश के समक्ष स्वीकार किया-मैं कुछ समझ ही नहीं सका कि यह सब कैसे हुआ, पर इतना अवश्य हुआ कि इस कृत्य के बाद मेरा मानसिक तनाव समाप्त हो गया और मुझे शान्ति मिली।
उसके विगत जीवन का पता लगाया गया तो वह व्यक्ति सच्चरित्र निकला। ऐसा ही मामला चन्द्रनखा का था।
-सम्पादक १ उन्होंने पंचवटी में आकर आश्रम बनाया। शूर्पणखा (चन्द्रनखा का
विश्व प्रसिद्ध और वैदिक धर्मोक्त नाम) अकारण ही वहाँ आई और दोनों भाइयों से काम-याचना करने लगी। राम की आज्ञा से लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिए । वह रोती हुई अपने भाई खर के पास पहुंची।
[वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड]