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२६८ | जैन कथामाला (राम-कथा)
-हम तुम्हारी रक्षा तो कर सकते हैं, किन्तु स्वामी बनकर नहीं-राम ने तुरन्त ही उत्तर दिया।
-क्यों मुझसे विवाह करने में क्या दोष है ? मैं भी कुलीन हूँ और आप भी राज-पुत्र !-चन्द्रनखा के शब्दों से उसकी इच्छा स्पष्ट हो गई।
दोनों भाइयों के हृदय में विचार आया- 'यह स्त्री कोई मायाविनी है । कुलीन कन्याएँ अनायास ही विवाह-याचना नहीं करती फिरतीं।' किन्तु उसका दिल न दुखे इसलिए मुस्कराकर राम बोले
-मेरी स्त्री तो साथ है। तुम स्त्री रहित लक्ष्मण के पास जाओ।
चन्द्रनखा ने लक्ष्मण से भी विवाह की प्रार्थना की। धिक्कार है ऐसी कामलिप्सा को जिसके कारण अपने पुत्र के हत्यारे के सम्मुख भी दीन याचना करनी पड़े। लक्ष्मणजी ने उसे उत्तर दिया
-सुन्दरी ! पहले तुमने मेरे पूज्य बन्धु से कामयाचना की । अतः तुम मेरे लिए पूज्य हो । मैं तुम्हारे साथ विवाह करने में असमर्थ हूँ।
चन्द्रनखा ने कई बार दोनों भाइयों से आग्रह किया किन्तु वे टस से मस नहीं हुए। उसकी कामयाचना'ठुकरा दी गई। कामाविष्ट नारी कोपाविष्ट हो गई । चन्द्रनखा क्रोध से जलने लगी। वहां से चली तो
१ पुत्र शोक से विह्वल चन्द्रनखा की राम-लक्ष्मण से कामयाचना अटपटी
सी मालूम पड़ती है। अधिकांश व्यक्तियों को इसमें उस नारी की कामलोलुपता ही दिखाई देती है जवकि इस तथ्य (अर्थात् कामुकता) की पुष्टि उसके विगत और आगामी जीवन से नहीं होती । चन्द्रनखा कभी कामुक नारी नहीं रही। ऐसा ही अचानक परिवर्तन एक व्यक्ति में फ्रांस में हुआ था । नर-नारी, मार्च ७२ में छपी घटना इस प्रकार है- .
एक व्यक्ति अपने युवा पुत्र का अन्तिम संस्कार करके लौट रहा था । उसके साथी आगे निकल गये थे और वह शोकविह्वल पीछे रह