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________________ पाँच सौ श्रमणों की बलि | २५७ अन्तिम दृश्य स्कन्दक न देख सके । कषाय के ज्वार में उन्होंने निदान किया-'इस तपस्या के फलस्वरूप मुझमें इतनी शक्ति उत्पन्न हो कि मैं इस पालक और दण्डक का संहार कर सकूँ।' करतम अट्टहासों के मध्य आचार्य स्कन्दक भी यन्त्र में पीस डाले. गये । कालाग्नि के समान वे अग्निकायिक देव बने । पालक अट्टहास करता हुआ अपने घर लौट आया । आज वह स्वयं को सफल मनोरथ समझ रहा था। उद्यान में मांस आदि के कारण अनेक पक्षी मँडराने लगे । एक पक्षी आचार्य स्कन्दक का रक्त से लिप्त रजोहरण ले उड़ा। रक्त से भरा हुआ होने के कारण रजोहरण भारी हो गया था। पक्षी उसका बोझ अधिक दूर तकान सँभाल सका । वह उसके पंजों से छटा और रानी पुरन्दरयशा के आगे आ गिरा।.. ___ रक्त से आप्लावित रजोहरण देखकर पुरन्दरयशा पहले तो विस्मित रह गई। ध्यानपूर्वक देखा-'यह तो वही रजोहरण है जो उसने स्वयं अपने महर्षि भाई स्कन्दक को दिया था।' रानी ने अपनी दासियों द्वारा सम्पूर्ण घटना का पता लगवाया तो मालूम हुआ कि यह सब षड्यन्त्र दुष्टवुद्धि पालक का है। रानी को अपने पति पर बहुत क्रोध आया। उसने राजा को भी दोपी माना। वह विचार करने लगी ऐसे अविवेकी राजा से और क्या आशा की जा सकती है। जो स्वामी अपने सेवकों के हाथ में खेल जाय । अपने विवेक का प्रयोग न करे। उसके जीवित रहने से क्या लाभ ? उसे तो संसार से उठ ही जाना चाहिए।' पुरन्दरयशा ज्यों-ज्यों इस दारुण घटना पर विचार करती उसे रानी कम हुआ कि दासियों द्वारा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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