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________________ २५६ / जैन कथामाला (राम-कथा) इस असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया पालक जैसे निकृष्टतम दुर्बुद्धि ने। ___ दुष्टबुद्धि ने साघुओं को घोरतम पीड़ा देने के लिए एक नई विधि का आविष्कार किया। एक यन्त्र बनवाया जिसमें मनुष्य पीले जा सकें। यन्त्र उद्यान में लगा दिया गया। पालक के क्रूर सेवक एक श्रमण को उठाते और यन्त्र में डाल देते । मुनियों के हाड़-मांस पिस रहे थे। लहू उद्यान में बह रहा था। काल भी काँप जाय ऐसा भयानक और वीभत्स दृश्य । किन्तु दृढ़ संयमी जैन श्रमण शुद्ध आत्मध्यान में लीन । एक के बाद एक ४६६ मुनि पिस गये जब पाँचसौवें अन्तिम वालमुनि को सेवक उठाने लगे तो आचार्य स्कन्दक ने कहा -पालक ! इस मुनि से पहले मुझे पीस डाल ! . -क्यों? -यह बाल मुनि है, नव-प्रवजित ! क्रूर अट्टहास कर उठा पालक । बोला'-ओह ! इसके प्रति मोह है तुम्हें ! तुम्हें पीड़ा हो यही तो मैं चाहता हूँ। और उसने हठपूर्वक वालमुनि को ही पिसवा डाला । क्रूरता और शान्ति का अद्भुत दृश्य एक ही स्थान पर। मुनि परमात्म भाव का साधन कर सुख के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान हो रहे थे और पालक घोर पाप का वध करके निकृष्टतम दुर्गति की ओर अग्रसर । ऐसे कठोरतम उपसर्गों को जैनश्रमण ही शान्तिपूर्वक सहन करके पंचम गति प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। महासत्वशाली ५०० मुनि तो कालधर्म प्राप्त कर गये किन्तु
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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