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पाँच सौ श्रमणों की बलि | २५३ 'श्रीसंघ उद्यान में विराजमान है' यह समाचार सम्पूर्ण नगर में फैल गया। नगर-निवासियों के झुण्ड के झुण्ड वहाँ आने लगे। राजा दण्डक भी सपरिवार आया। आचार्यश्री की कल्याणकारी देशना सुनकर सभी हर्पित हुए। इस अवसर परं पुरन्दरयशा ने रत्नकम्वल के तन्तुओं से निर्मित्त एक रजोहरण आचार्य देव को भेंट किया। सभी लोग हर्षित मन नगर को लौट आये।
X -महाराज ! एक विशेष वात कहनी है। -पालक ने राजा दण्डक से एकान्त में जाकर कहा।
--कहो मन्त्री ! क्या बात है ? --राजा दण्डक ने उत्तर दिया। -राजन् ! वात विल्कुल सत्य है किन्तु आपको विश्वास नहीं
होगा।
-अवश्य होगा, मन्त्रिवर ! सत्य पर कौन विश्वास नहीं करेगा। तुम निस्संकोच कहो।
' –स्कन्दक वास्तविक श्रमण नहीं है। यह 'बगुला-भगत है। इसके साथी साधु न होकर योद्धा हैं जो वेश बदलकर यहाँ आये हैं।
-क्या ? -चीख सा पड़ा दण्डक ।
-और भी सुनिये नरेश ! इनका इरादा आपको मारकर राज्य हड़पने का है।
-तुम्हारा कथन मिथ्या है, मन्त्री ! -दण्डक के नेत्र क्रोध से लाल हो गये थे।
-मेरा एक-एक शब्द सत्य है। -पालक के शब्दों में दृढ़तापूर्ण विश्वास था।
-मैं नहीं मान सकता।