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: १५: पाँच सौ श्रमणों की बलि
रामगिरि पर्वत से चलकर राम-लक्ष्मण-सीता ने महाभयंकर दण्डक वन में प्रवेश किया। वन में स्थित एक ऊँचे पर्वत की गुफा में तीनों सुखपूर्वक काल-यापन करने लगे।
एक बार शुभयोग से त्रिगुप्त और सुगुप्त नाम के दो चारण ऋद्धिधारी मुनि वहाँ दो मास के अनशन के पश्चात पारणे हेतु आये। तीनों ने उनकी भक्तिपूर्वक वन्दना की और प्रासुक अन्नपान से प्रतिलाभित किया।
इस उत्तम दान को जम्बू द्वीप का विद्याधर राजा रत्नजटी और दो देव भी देख रहे थे। उन्होंने हर्षित होकर राम को अश्वसहित दिव्य रथ दिया। ___मुनियों के दान ग्रहण करते ही आकाश से देवों ने रत्न और सुगन्धित जल की वर्षा की । ___ समीप के वृक्ष पर एक गन्ध नाम का गीध पक्षी बैठा यह सब देख रहा था। उसकी काया अनेक व्याधियों का आगार थी। वह बार-बार मुनियों को उत्सुकतापूर्वक. देखता । उसके हृदय में विचार उठता--'देखा है, पहले भी कहीं देखा है, कब ? कहाँ ? कुछ याद नहीं।'