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केवली कुलभूषण और देशभूषण | २४५ मुनि सम्मेतशिखर पर बहुत समय तक तपस्या करते रहे । आयु के अन्त में अनशनपूर्वक मरण करके दोनों मुनि महाशुन देवलोक में सुन्दर और सुकेश नाम के महद्धिक देव हुए।
म्लेच्छ (वसुभूति का जीव) अनेक योनियों में भ्रमण करता रहा। पुण्य योग से उसे मनुष्यभव मिला तो वह तापस हो गया। बाल-तपके फलस्वरूप वह ज्योतिष्क देवों में धूमकेतु नाम का मिथ्यादृष्टि देव
हुआ।
उदिन और मुदित महाशुक्र देवलोक से च्यवकर रिष्टपुर नगर के राजा प्रियंवद की रानी पद्मावती के गर्भ से रत्नरथ और चित्ररथ नाम के पुत्र हुए। धूमकेतु का आयुष्य भी पूर्ण हुआ तो उसने भी उसी राजा की दूसरी रानी कनकाभा के उदर में जन्म लिया । उसका नाम पड़ा-अनुद्धर । अनुद्धर अपने सौतेले भाइयों से प्रच्छन्न शत्रता रखता था।
राजा प्रियंवद ने बड़े पुत्र रत्नरथ को राजा बनाया और चित्ररथ तथा अनुद्धर को युवराज । उसने दीक्षा ग्रहण करली और छह दिन पश्चात ही मरण करके देव हो गया।
रत्नरथ प्रजापालन करने लगा। एक राजा ने अपनी पुत्री श्रीप्रभा का विवाह राजा रत्नरथ से कर दिया तो अनुद्धर क्रोध से पागल हो गया । वह श्रीप्रभा से स्वयं विवाह करने का इच्छुक था।
उसने युवराज पद छोड़ा और रिष्टपुर में ही उत्पात करने लगा। राजा रत्नरथ ने उसे युद्ध में पकड़ा और बहुत परेशान करने के बाद मुक्त किया।
दुखी होकर अनुद्धर तापस हो गया किन्तु स्त्री के संग के कारण उसका तप निष्फल हुआ। मृत्यु पाकर वह अनेक योनियों में भटकता रहा । अन्त में किसी पुण्य योग से उसे मनुष्य जन्म मिला तो तापस बनकर बाल तप करके अनलप्रभ नाम का ज्योतिषी देव हआ।