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२४४ | जैन कथामाला (राम-कथा) ___-इन दो मच्छरों को और मसल दो तभी तो निश्शंक भोग कर सकेंगे।-उपयोगा का संकेत उदित-मुदित की ओर था।
धिक्कार है, ऐसी काम-लिप्सा को जो पर-पुरुप-गमन के लिए पति और पुत्र के वध में प्रवृत्त करा दे।
उपयोगा और वसुभूति ने उदित-मुदित को मारने की योजना तैयार कर ली।
प्रत्येक स्त्री अपने पति के चाल-चलन पर सूक्ष्म दृष्टि रखती है। उपयोगा के प्रति अपने पति की काम-भावना का ज्ञान तो वसुभूति की पत्नी को था ही। उसने अनुमान लगाया कि इस कामातुर ने ही अपने मित्र अमृतस्वर को मार डाला होगा। किसी प्रकार उसे यह खबर भी मिल गई कि अब इन दोनों की योजना उदित-मुदित को ठिकाने लगाने की है। उसने यह समाचार उन दोनों भाइयों के कान में डाल दिया । परिणामस्वरूप क्रोधित होकर उदित ने वसुभूति को ही मार डाला । वह मरकर नलपल्ली में म्लेच्छ बना। ___ एक वार मतिवर्द्धन मुनि की धर्मदेशना सुनकर राजा ने दीक्षा ले ली । उसके साथ ही उदित-मुदित भो प्रवजित हो गये।
मुनि उदित-मुदित सम्मेतशिखर की ओर गये तो मार्ग भूलकर नल-पल्ली में जा पहुंचे। पूर्वभव का शत्र म्लेच्छ उन्हें देखते ही मारने को लपका किन्तु म्लेच्छ राजा ने उसे रोका और मुनियों को को सुरक्षापूर्वक वन के बाहर पहुँचवा दिया ।।
१ म्लेच्छ राजा पूर्वभव में पक्षी था और उदित-मुदित हलवाहे । एक बार
वह पक्षी किसी शिकारी (बहेलिये) के जाल में फंस गया। उन दोनों भाइयों ने उस पक्षी को छुड़वाकर उसकी जीवन रक्षा की थी। इसी कारण इस जन्म में म्लेच्छ राजा ने दोनों मुनियों की सुरक्षा की ।
(त्रिषष्टि शलाका ७१५ गुजराती अनुवाद पृष्ठ ६२) ।