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रात्रिभोजन त्याग को शपथ | २३६
पड़ते ही वह कामातुर हो गई । उसने पिता से अपनी हठ छोड़ने का आग्रह किया किन्तु पिता अपनी प्रतिज्ञा से टस से मस न हुए ।
तत्काल वरमाला मँगाकर राजकुमारी को दे दी गई ।
राजा प्रहार करने को तत्पर हुआ । सम्पूर्ण सभा अपलक दृष्टि से देखने लगी । 'परिणाम क्या होगा ?" यह उत्सुकता सभी के हृदय में व्याप्त थी ।
शत्रुदमन को प्रहार हेतु तत्पर देखकर लक्ष्मण ने कहा
- राजन् ! सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर लेना । कहीं मन की मन में न रह जाय ।
एक के बाद एक राजा शत्रुदमन ने पाँच प्रहार किये। दो प्रहार तो दोनों हाथों पर, दो दोनों काँखों ( बगल का भाग) में और एक दाँत परं । शत्रुदमन ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी थी किन्तु लक्ष्मण की मुस्कराहट भी फीकी नहीं पड़ी ।
जितपद्मा के मुख पर पसन्नता चमक उठी। वह वरमाला लेकर वढ़ी और लक्ष्मण के कण्ठ में डाल दी । राजा शत्रुदमन ने भी प्रफुल्ल होकर कहा
- इस कन्या को ग्रहण करो ।
लक्ष्मण ने उत्तर दिया
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-अग्रज राम सती सीता के साथ बाहर उद्यान में ठहरे हैं। उनकी आज्ञा विना मैं कुछ नहीं कर सकता |
अब राजा शत्रुदमन को ज्ञात हुआ कि सामने खड़ा युवक साधारण नहीं अपितु अयोध्यानरेश दशरथ का प्रतापी पुत्र लक्ष्मण है | तुरन्त ही उसने उनका यथोचित सत्कार किया और राम के पासजाकर उन्हें प्रणाम ।
आंग्रहपूर्वक वह राम-जानकी को महल में ले आया । वड़ी धूम