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२३८ | जैन कथामाला (राम-कथा)
-भद्र ! इस घोषणा का रहस्य क्या है ? उस पुरुप ने बताया
यहाँ का राजा शत्रुदमन बहुत पराक्रमी है। उसकी रानी कन्यकादेवी से जितपद्मा नाम की एक कन्या हुई। वह कन्या रूप और गुण में पद्मा (लक्ष्मी) से भी बढ़कर है। उसी के योग्य वर की खोज के लिए यह घोषणा प्रति दिन की जाती है। ___-तो क्या अभी तक कोई योग्य वर ही नहीं मिला? -लक्ष्मण ने पूछा।
-आये तो वहुत किन्तु प्रहार न सह सके। -उस व्यक्ति ने बताया और एक चल दिया।
लक्ष्मण भी वहाँ से चले तो सीधे राज्यसभा में पहुंचे। राजा ने पूछा
-किसलिए आये हो ? -आपकी घोषणा नगर में सुनी थी, इसीलिए।
राजकुमारी के इच्छुक हो ? पहले तो परिचय वतायो। तुम हो. कौन ? -राजा ने व्यंग से पूछा।
-पुरुष का परिचय उसका पराक्रम है, नरेश। -लक्ष्मण के उत्तर में क्षात्रतेज का पुट था। -
राजा ने लक्ष्मण को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा और बोला- .
-बहुत पराक्रमी समझते हो स्वयं को । मेरा एक प्रहार भी न झेल सकोगे। ___-एक की तो वात ही क्या पाँच प्रहार कर लेना। यह कायावज्र से भी कठोर है।
उसी समय राजपुत्री जितपद्मा सभा में आई। लक्ष्मण पर दृष्टि
कौन राजकुमारी कोषणा नगर में