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________________ रामपुरी में चार मास | २२१ अब में आपकी शरण हूँ। आप आज्ञा दीजिए मैं क्या करूँ। राम ने कहातुम राजा वालिखिल्य को वापिस उनके नगर कुवेरपुर पहुंचा दो। काक ने तुरन्त राजा को उसकी नगरी भेज दिया । कल्याणमाला को पिता मिल गये और पिता को पुत्री । कुर्वरपुर को अपना पुराना राजा। . राम का वचन पूरा हो चुका था। वे आगे चल दिये और पल्लीपति काक अपनी पल्ली की ओर। विन्ध्याटवी को पार कर अनुज और सीता सहित श्रीराम तापी नदी के तट पर पहुँचे । नदी पार करके प्रान्त भाग में अरुण नाम के ग्राम में आये। अरुण ग्राम में कपिल नाम का अग्निहोत्री ब्राह्मण रहता था । वह जितना क्रोधी था उसकी पत्नी सुशर्मा उतनी ही शान्त स्वभाव वाली। सीता को तृषातुर जानकर वे तीनों उसके घर पहुँचे । सुशर्मा ने तीनों को अलग-अलग आसन पर बिठाया और शीतल एवं स्वादिष्ट जल से सन्तुष्ट किया। उसी समय पिशाच के समान कपिल बाहर से आ गया और क्रोधित होकर अपनी स्त्री से बोला -अरे मूर्खा ! इन मलिन लोगों को मेरे घर में क्यों विठा लिया। इन्होंने मेरा अग्निहोत्र अपवित्र कर दिया। लक्ष्मण इन शब्दों को सुनकर एकदम उठ खड़े हुए और ब्राह्मण का हाथ पकड़कर उसे घुमाने लगे। . राम ने देखा कि ब्राह्मण के प्राण ही निकल जायेंगे तो उन्होंने अनुज को समझाया चार
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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